अन्ना के लोकप्रिय होने पर, राजनीति को अपना एकाधिकार की वस्तु समझने वाले लोगो मे खलबली मच गयी है। ऐसे व्यक्तियों की समझ पर जनता को तरस ही आता है, जो गाहे-बगाहे अपनी तुलना अन्ना से करते है और अपने कर्मो का आत्मविश्लेषण नहीं करते है और जो वास्तव मे अना के पग की धूल भी नहीं है।
1 टिप्पणी:
anna jaisa koi nahin ....
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