बिचौलिया कि जय हो !

महंगाई है कि परछाई की तरह जान ही नहीं छोडती , ऊपर से बिचौलियो की मार तो कमर ही तोड़ देती है। जब हर जगह से आस छूटती है तो हमेशा की तरह भगवान का ही आसरा है।जब से ये सुना कि आलू 2 रूपये किलो किसान बेच रहे है तो बड़े अरमान से सीना फुलाते हुए बाजार गया यह सोचते हुए कि आज तो हप्ते भर की सब्जी तो खरीद ही डालू ,ये रोज-रोज का झंझट बड़ा खराब है।
गरजते हुए ठेले वाले से पूछा - "आलू क्या भाव दे रहे हो!"
ठेले वाले ने घूरती निगाहों से प्रश्नवाचक चेहरा बनाते हुए पलट कर कहा -"बाबूजी बस 8 रूपये किलो है।"
मैंने बचाव मुद्रा मे आते हुए कहा -"अरे किसान तो 2 रूपये किलो बेच रहे है।"
ठेले वाले ने कहा - "तो बाबूजी यहाँ काहे आये हो? डाईरेक्ट किसान से ही ले लो न।"
"इतना प्राफिट लेते हो,जनता को लूट रहे हो!" - दार्शनिक भाव से मैंने कहा।
"बाबूजी हम कहाँ लूट रहे है , लूट तो रहे है बिचौलिया जो गरीब किसानन से सस्ता खरीद रहे है और हमका महंगा दे रहे है तो हम सस्ता कहाँ से बेचें "-ठेले वाले ने सफाई देते हुए कहा
पुनःठेले वाले ने निष्कर्ष निकालते हुए कहा -" खेल मे तो मारे जा रहे या तो किसान या तो बेचें वाले और बिचौलियों की मौज ही मौज है।"
अब तक मेरा सस्ते का नशा काफूर हो चला था। बात को ख़त्म करने के उद्देश्य से मैंने कहा - "भैया एक पाव आलू दे दो। "
और घर उलटे पाँव लौटते हुए मन ही मन विचार करने लगा कि जो बात सरकार को नहीं समझ मे आई वो ठेले वाले भी जानते है।

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