पोथी में मन की स्वछंद अभिव्यक्ति ...
चुनाव
भूखा !
तू हर हल मे मरेगा ,
किंतु जरा ,
इस अपने 'खद्दरधारी ' की भी सोच ,
" खड़ा हूँ तेरे सामने ,
और तू बैठा है !
कभी तो सूरज पश्चिम से निकला है"
पुकार
रात के सन्नाटे को चीरती हुई ,
फिर खो गई पुकार,
और जा मिली उस महाकाल से ,
जिसमे से आई थी !