मन की चाह

ख्यालो की उड़ान लिए ,
बैठ खटोले मे निकला ,
विश्व भ्रमण की चाह लिए ,
मै मन अरमान लिए ,
देखू नर-नारायण को ,
खेतो मे जो मर मिटता है ,
दाता है जो अन्न का ,
किंतु खाली है जिसका पेट ,
ख्यालो की उड़ान लिए ,
बैठ खटोले मे निकला ,
विश्व भ्रमण की चाह लिए ,
मै मन अरमान लिए ,
देखू उन जंगलो को ,
सिकुडे हर पल भेंट चढ़े ,
मानव विकास की बेदी पर ,
कुर्बानी जिसकी 'आह' लिए ,
ख्यालो की उड़ान लिए ,
बैठ खटोले मे निकला ,
विश्व भ्रमण की चाह लिए ,
मै मन अरमान लिए ,
देखू उन नदियों को ,
जो विश्व-विकास की गाथा थी ,
पानी जिसका हर पल हुए ,
दूषित,कलुषित और कम हुए ,
ख्यालो की उड़ान लिए ,
बैठ खटोले मे निकला ,
विश्व भ्रमण की चाह लिए ,
मै मन अरमान लिए ,
क्रमश: .......

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