आवारा

उस विभत्स्य ! दृश को देख कर ,
कॉप गया मेरा अन्तरंग ,
मेरे रोवों के तार मे ,
कपकपी सी हो गई ,
उस आवारा लाश को ,
जिसका इस संसार से ,
रिश्ता न अब कोई था ,
खा रहे थे ,
गीद्ध नोच-नोच कर।

2 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

aapki kalam auron se juda hai ...

Sanjay Grover ने कहा…

हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं ............
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ
-(बकौल मूल शायर)