देश

हाय रे ! देश तेरा क्या हाल हो गया है,
कहाँ गए वो लहलहाते खेत,
कहाँ गए वो बगीचे,
कहाँ गई वो गाँवो की चौपाल,
जिस पर बैठकर प्रधान करते थे ,
गाँवो के भविष्य का फैसला,
अब भी लहलहा रहे है ,
लेकिन वे खेत नही,
आबादी है ,
बगीचे नही ,
बर्बादी है,
गाँवो की चौपाल नही ,
गुंडों की जमघट है,
जो फैसला करते है ,
व्यक्ति का ही नही,
गाँवो का ही नही,
इस देश के भविष्य का भी ।



कोई टिप्पणी नहीं: